Tuesday, 18 June 2019

चमकी(मुजफ्फरपुर) : मुजफ्फरपुर का शोक

ये तो पिछले कई सालो से होते आ रहा है , जाने तो जाती रहती है  , हमारे घर का कोई थोड़े मरा है।  ऐसी कुछ सोच है नेताओ की।  उनके घर के लोगो के साथ ऐसा नहीं हुआ है इसलिए उन्हें सबक नहीं मिला है इस बात का की जान जाने का क्या मतलब होता है।

मुजफ्फरपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में मासूमों की मौत का आंकड़ा 36 तक पहुंच चुका है. अस्पताल में फिलहाल 117 बच्चे भर्ती हैं जिनका लगातार इलाज चल रहा है.

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम जिसे आम बोलचाल की भाषा में चमकी बुखार या दिमागी बुखार भी कहा जाता है, इसकी वजह से पिछले कुछ दिनों में इस अस्पताल में मासूम बच्चों के पहुंचने का दौर जारी है.

अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ सुनील कुमार शाही ने आजतक से बातचीत करते हुए बताया कि दो दिन पहले अचानक से 25 मासूम बच्चे जिनकी उम्र एक साल से लेकर 10 साल के बीच थी इस अस्पताल में भर्ती हुए. डॉ. शाही ने ने बताया कि अब तक 117 बच्चे इस अस्पताल में भर्ती हो चुके हैं, जिनमें से 36 की अब तक मौत हो चुकी है.

डॉक्टरों का मानना है कि चमकी बुखार अत्यधिक गर्मी और हवा में नमी 50 फीसदी से ज्यादा होने की वजह से होता है. जानकारों का मानना है कि इस साल प्रदेश में अब तक बारिश नहीं हुई है, जिसकी वजह से मासूम बच्चों के बीमार होने की संख्या लगातार बढ़ रही है.

पिछले डेढ़ दशक से इस बात को लेकर भी काफी शोध हुआ है कि मुजफ्फरपुर में लीची की उपज काफी होती है. क्या इस वजह से तो बच्चों में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की शिकायत तो नहीं हो रही है. श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के शिशु विभाग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. गोपाल शंकर साहनी का कहना है कि उन्होंने खुद इस विषय को लेकर काफी शोध किया है और पाया है कि इस बीमारी का लीची से कोई लेना देना नहीं है.

हालांकि, मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. सुनील कुमार शाही का कहना है कि इस बात को लेकर और शोध होना चाहिए कि कहीं लीची की वजह से तो बच्चों में सालाना यह बीमारी नहीं देखी जा रही है.

ये कोई नई बात नहीं है। अभी तक अगर सरकार चाहती तो इसका समाधान किया जा सकता था।  लेकिन इच्छाशक्ति की कमी है . हर साल इतने बचो की बलि चढ़ती है।  लेकिन अभी तक इस बीमारी का समाधान नहीं किया जसका है।  जो भी अस्पताल है वह पर वो रिसोर्सेज ही नहीं है जिससे बच्चो की जान बचाई जा सके।
मरीज जमीं पर लेट के इलाज करा रहे है , अस्पताल में पंखा नहीं है लेकिन सरकार को क्या।  उनके घर का कोई मरीज थोड़े न है। 

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